महान गणितज्ञ शकुंतला देवी पर शोध-पत्र
परिचय:
शकुंतला देवी, जिन्हें "ह्यूमन कंप्यूटर" के नाम से जाना जाता है, भारतीय गणितीय प्रतिभा की एक अद्वितीय मिसाल थीं। 4 नवंबर 1929 को बेंगलुरु, भारत में जन्मी शकुंतला देवी ने गणित में ऐसी विलक्षण क्षमता प्राप्त की, जिसे देखकर विश्व आश्चर्यचकित रह गया। उनके अद्भुत गणितीय कौशल ने न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में उनका नाम ऊँचा किया। संख्याओं के प्रति उनका लगाव और त्वरित गणना करने की उनकी अद्वितीय क्षमता ने उन्हें गणित के क्षेत्र में एक महान स्थान दिलाया।
प्रारंभिक जीवन और गणितीय कौशल का विकास:
शकुंतला देवी का जन्म एक सामान्य परिवार में हुआ था। उनके पिता सर्कस में काम करते थे और छोटी उम्र में ही उनकी गणना करने की अद्वितीय क्षमता का पता चला। चार वर्ष की उम्र में ही उन्होंने जटिल गणनाओं को हल करना शुरू कर दिया था, और 6 वर्ष की उम्र में मैसूर विश्वविद्यालय में अपनी पहली गणितीय प्रस्तुति दी। उनकी शिक्षा औपचारिक विद्यालयों में नहीं हुई थी; उन्होंने अपनी गणना की प्रतिभा को स्वयं विकसित किया।
गणना कौशल और विश्व रिकॉर्ड:
शकुंतला देवी का नाम सबसे पहले तब चर्चा में आया जब उन्होंने मानसिक गणना द्वारा कई कठिन गणनाएँ सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत कीं। 1977 में, उन्होंने 201 अंकों की एक संख्या का 23वां मूल ज्ञात किया, और यह गणना उन्होंने मात्र 50 सेकंड में की। इसके बाद, 1980 में लंदन के इंपीरियल कॉलेज में उन्होंने दो 13 अंकों की संख्याओं का गुणा किया और मात्र 28 सेकंड में सही उत्तर दिया, जिससे उन्होंने गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज किया। इस उपलब्धि के कारण उन्हें "ह्यूमन कंप्यूटर" की उपाधि मिली।
प्रकाशन और लेखन:
शकुंतला देवी केवल गणनाओं में ही नहीं, बल्कि लेखन में भी अत्यंत प्रतिभाशाली थीं। उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं जिनमें "फन विद नंबर्स," "पज़ल्स टू पज़ल यू," और "मैथमेटिक्स कैन बी फन" जैसी लोकप्रिय पुस्तकें शामिल हैं। इन पुस्तकों ने गणित को जटिलता से निकालकर एक मनोरंजक विषय के रूप में प्रस्तुत किया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने एक पुस्तक "द वर्ल्ड ऑफ होमोसेक्सुअल्स" भी लिखी, जिसमें उन्होंने समलैंगिकता जैसे विषय को बड़े संवेदनशील और उदार दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया। यह पुस्तक उस समय में एक क्रांतिकारी प्रयास थी, जब भारत में ऐसे मुद्दों पर खुलकर चर्चा नहीं की जाती थी।
गणितीय योगदान और समाज में भूमिका:
शकुंतला देवी का योगदान केवल उनकी गणना की अद्वितीय क्षमताओं तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने गणित को जन-सामान्य के बीच लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने यह सिद्ध किया कि गणित केवल पुस्तकीय ज्ञान नहीं है, बल्कि इसे अभ्यास और रुचि के साथ आत्मसात किया जा सकता है। शकुंतला देवी विभिन्न देशों में गणितीय प्रदर्शन और कार्यशालाएँ आयोजित करती थीं, जिससे लाखों लोग प्रेरित हुए। उनकी इस शिक्षा का उद्देश्य था कि लोग गणित के प्रति भय को त्यागें और इसे एक रोचक विषय के रूप में अपनाएँ।
शकुंतला देवी का प्रभाव और मान्यता:
शकुंतला देवी को उनके अद्वितीय कौशल और योगदान के लिए कई मान्यताओं से नवाजा गया। उनके गणना कौशल को वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने कई बार जांचा, और हर बार उन्होंने अपनी क्षमताओं से सभी को चौंका दिया। उन्होंने यह साबित किया कि गणना में तीव्रता और सटीकता के लिए तकनीकी उपकरणों की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि मानसिक अभ्यास से यह संभव है।
उनके योगदान के लिए भारत सरकार और विभिन्न संस्थानों ने उन्हें सम्मानित किया। उनकी गणितीय प्रतिभा और समाज में उनके योगदान को देखकर उन्हें "गणितीय चमत्कार" और "भारत का गर्व" कहा गया।
निष्कर्ष:
शकुंतला देवी का जीवन एक प्रेरणा का स्रोत है। उनके अद्वितीय गणितीय कौशल और शिक्षा के प्रति उनकी लगन ने उन्हें एक महान गणितज्ञ के रूप में स्थापित किया। उनकी उपलब्धियाँ यह दर्शाती हैं कि यदि व्यक्ति के पास समर्पण, रुचि और अभ्यास हो, तो किसी भी क्षेत्र में महारत हासिल की जा सकती है। "ह्यूमन कंप्यूटर" के रूप में उनकी छवि आज भी भारतीय समाज में एक प्रेरणा के रूप में जीवित है। शकुंतला देवी ने गणित के क्षेत्र में जो योगदान दिया, वह सदैव स्मरणीय रहेगा और उनके द्वारा दिखाया गया मार्ग भावी पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा।
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