भारतीय संविधान के अनुच्छेद 63 से 73 तक उपराष्ट्रपति के पद, उसके कार्य, शक्तियाँ, चुनाव प्रक्रिया और उससे संबंधित अन्य प्रावधानों को विस्तृत रूप से वर्णित किया गया है। उपराष्ट्रपति का पद भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण स्तम्भ है, जो राष्ट्रपति के बाद देश के दूसरे सबसे उच्चतम पद को धारण करता है।
आइये, इन अनुच्छेदों में उपराष्ट्रपति के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करें:
अनुच्छेद 63 - उपराष्ट्रपति का पद
- अनुच्छेद 63 के अनुसार, भारत में एक उपराष्ट्रपति का पद होगा। संविधान में यह प्रावधान इसलिए किया गया है ताकि राष्ट्रपति की अनुपस्थिति या असमर्थता की स्थिति में उपराष्ट्रपति देश के उच्चतम प्रशासनिक कार्यों को संभाल सके।
अनुच्छेद 64 - राज्यसभा के पदेन सभापति
- अनुच्छेद 64 के अनुसार, उपराष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन (एक्स-ऑफिसियो) सभापति भी होते हैं। इसका मतलब है कि उपराष्ट्रपति संसद के ऊपरी सदन (राज्यसभा) के सभापति का भी कार्यभार संभालते हैं। इस भूमिका में वे सदन की कार्यवाही का संचालन करते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि सदन में विधिवत कार्य हो सके। यदि उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति के रूप में कार्य नहीं कर सकते, तो इस स्थिति में उनके स्थान पर एक अन्य सदस्य को अध्यक्ष नियुक्त किया जा सकता है।
अनुच्छेद 65 - राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में कार्यभार
- अनुच्छेद 65 में यह प्रावधान है कि राष्ट्रपति के पद रिक्त होने, उनके असमर्थ होने या उनकी अनुपस्थिति की स्थिति में, उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति का कार्यभार संभालेंगे। उपराष्ट्रपति इस स्थिति में राष्ट्रपति के सभी कार्यों को तब तक पूरा करेंगे जब तक नया राष्ट्रपति नियुक्त नहीं हो जाता।
अनुच्छेद 66 - उपराष्ट्रपति का चुनाव
अनुच्छेद 66 के अंतर्गत उपराष्ट्रपति का चुनाव प्रक्रिया वर्णित है:
- निर्वाचक मंडल: उपराष्ट्रपति का चुनाव निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है, जिसमें राज्यसभा और लोकसभा के सभी निर्वाचित सदस्य शामिल होते हैं। इसमें राज्य विधानसभाओं के सदस्य भाग नहीं लेते।
- चुनाव पद्धति: चुनाव "एकल संक्रमणीय मत" (सिंगल ट्रांसफरबल वोट) की आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के माध्यम से किया जाता है, जिसमें गुप्त मतदान की व्यवस्था होती है। यह पद्धति सुनिश्चित करती है कि चुनाव निष्पक्ष और पारदर्शी हो।
- पात्रता: उपराष्ट्रपति बनने के लिए उम्मीदवार का भारतीय नागरिक होना आवश्यक है और उसकी आयु कम से कम 35 वर्ष होनी चाहिए। उसे राज्यसभा का सदस्य बनने के योग्य भी होना चाहिए और किसी लाभ के पद पर आसीन नहीं होना चाहिए।
अनुच्छेद 67 - कार्यकाल
अनुच्छेद 67 के अनुसार, उपराष्ट्रपति का कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है। इसके अलावा, यह अनुच्छेद उपराष्ट्रपति के इस्तीफे, पदच्युत होने और कार्यकाल समाप्त होने की स्थिति में अन्य व्यवस्थाओं का प्रावधान करता है:
- इस्तीफा: उपराष्ट्रपति अपने इस्तीफे की पेशकश राष्ट्रपति को दे सकते हैं।
- पदच्युति: उपराष्ट्रपति को पद से हटाने के लिए एक प्रस्ताव राज्यसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है, जो लोकसभा के सदस्यों द्वारा सहमति के बाद ही पारित होगा।
अनुच्छेद 68 - रिक्ति की पूर्ति
- अनुच्छेद 68 में उपराष्ट्रपति के पद रिक्त होने पर उसकी पूर्ति के प्रावधान दिए गए हैं। उपराष्ट्रपति का पद रिक्त होने पर चुनाव उस तिथि के 6 महीने के भीतर करवा लिया जाता है।
अनुच्छेद 69 - शपथ ग्रहण
- अनुच्छेद 69 के अनुसार, उपराष्ट्रपति को अपना पद ग्रहण करने से पहले राष्ट्रपति के सामने एक शपथ लेनी होती है। यह शपथ उनकी सत्यनिष्ठा और भारत की संप्रभुता व संविधान की रक्षा के लिए प्रतिबद्धता को सुनिश्चित करती है।
अनुच्छेद 70 - आकस्मिक प्रावधान
- अनुच्छेद 70 में आकस्मिक प्रावधानों का उल्लेख है। इसके अंतर्गत उपराष्ट्रपति के पद को लेकर ऐसी स्थिति में, जब संविधान में किसी प्रकार की कमी हो, संसद कानून बनाकर समाधान कर सकती है। यह अनुच्छेद इसलिए है ताकि उपराष्ट्रपति के पद में किसी प्रकार की रिक्ति या समस्या उत्पन्न होने पर संसद इस मामले का समाधान कर सके।
अनुच्छेद 71 - चुनाव विवाद
- अनुच्छेद 71 के अनुसार, उपराष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित किसी भी विवाद का निर्णय सुप्रीम कोर्ट के द्वारा किया जाएगा। यदि चुनाव प्रक्रिया में कोई अनियमितता या विवाद उत्पन्न होता है, तो उसे सुलझाने का अधिकार केवल सर्वोच्च न्यायालय को है।
अनुच्छेद 72 - क्षमा, दया, और अन्य अधिकार
- हालांकि यह अनुच्छेद राष्ट्रपति के अधिकारों से संबंधित है, लेकिन उपराष्ट्रपति के पद की स्थिति में राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में ये अधिकार अस्थायी रूप से उपराष्ट्रपति को सौंपे जा सकते हैं।
अनुच्छेद 73 - केंद्र सरकार के कार्यक्षेत्र
- यह अनुच्छेद संघ और राज्यों के बीच कार्यक्षेत्र को विभाजित करता है, जो उपराष्ट्रपति की भूमिका को सीधे प्रभावित नहीं करता, लेकिन केंद्र के कार्यों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।
उपराष्ट्रपति के कार्य और शक्तियाँ
- राज्यसभा का संचालन: उपराष्ट्रपति के रूप में, वे राज्यसभा की कार्यवाही को सुचारू रूप से संचालित करते हैं। इसमें विधेयकों पर चर्चा और मतदान का संचालन शामिल होता है।
- निर्णायक मत का अधिकार: राज्यसभा में किसी मुद्दे पर मतों की संख्या बराबर होने की स्थिति में उपराष्ट्रपति निर्णायक मत देकर निर्णय लेते हैं।
- राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में कार्यभार संभालना: राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में उपराष्ट्रपति उन्हें मिलने वाली सभी शक्तियों और जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हैं।
- अन्य कार्य: उपराष्ट्रपति को संविधान में विशेष शक्तियों का उल्लेख नहीं किया गया है, परन्तु उन्हें राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के साथ मिलकर देश के नीति निर्धारण और प्रशासन में भाग लेने का अवसर मिल सकता है।
उपराष्ट्रपति का महत्त्व
भारत में उपराष्ट्रपति का पद केवल प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र और प्रशासनिक कार्यों की सुदृढ़ता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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