"उर्मिला जी को गुप्त जी ने पुनःजीवित किया है" यह कथन हिंदी साहित्य के प्रसंग में अत्यंत महत्वपूर्ण और सारगर्भित है। यह कथन न केवल मैथिलीशरण गुप्त के साहित्यिक योगदान की प्रशंसा करता है, बल्कि भारतीय संस्कृति और इतिहास के एक उपेक्षित चरित्र को पुनर्जीवित करने के उनके प्रयास को भी उजागर करता है। इस कथन की समीक्षा करते समय हमें उर्मिला के चरित्र, मैथिलीशरण गुप्त के साहित्यिक योगदान, और "साकेत" महाकाव्य में उर्मिला की भूमिका का विश्लेषण करना होगा।
उर्मिला: रामायण का एक उपेक्षित पात्र - रामायण में उर्मिला का चरित्र अपेक्षाकृत गौण है। उर्मिला, लक्ष्मण की पत्नी और जनक की पुत्री, सीता की बहन हैं। लेकिन रामायण के मुख्य घटनाक्रम में उर्मिला का जिक्र बहुत कम होता है। जब लक्ष्मण, राम और सीता के साथ वनवास पर जाते हैं, तो उर्मिला अयोध्या में ही रहती हैं। इस प्रकार, रामायण के कथा प्रवाह में उर्मिला का स्थान अपेक्षाकृत गौण और उपेक्षित रहा है। यद्यपि उर्मिला का त्याग महान था, लेकिन उनकी पीड़ा और संघर्ष को रामायण में उतनी प्रमुखता नहीं मिली, जितनी कि अन्य पात्रों को मिली।
मैथिलीशरण गुप्त और "साकेत" - मैथिलीशरण गुप्त हिंदी साहित्य के "खड़ी बोली" के एक प्रमुख कवि थे। उनके महाकाव्य "साकेत" में उन्होंने रामायण की कहानी को एक नए दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया, जिसमें उर्मिला के चरित्र को केंद्र में रखा गया। "साकेत" में गुप्त जी ने उर्मिला के चरित्र को गहराई से उभारा और उसके माध्यम से उस समय की नारी के अंतर्द्वंद्व, पीड़ा और त्याग को चित्रित किया। गुप्त जी ने उर्मिला के चरित्र को मानवीय संवेदनाओं, संघर्षों और दार्शनिकता से भरपूर दिखाया।
उर्मिला की पीड़ा और त्याग - "साकेत" में उर्मिला का चरित्र केवल एक पत्नी के रूप में ही नहीं, बल्कि एक त्यागमयी और सहनशील नारी के रूप में उभरता है। राम और सीता के वनवास के समय लक्ष्मण ने भी उनके साथ वन जाने का निर्णय लिया। इस समय उर्मिला ने अपने पति के निर्णय का सम्मान किया और अयोध्या में ही रहने का निश्चय किया। उर्मिला का यह त्याग उनके प्रेम और कर्तव्य के प्रति उनकी निष्ठा को दर्शाता है। गुप्त जी ने इस स्थिति को बड़ी ही संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत किया है, जिससे उर्मिला का चरित्र नारी समाज के आदर्श के रूप में उभर कर सामने आता है।
उर्मिला का त्याग केवल शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर भी था। उन्होंने अपने पति के बिना जीवन जीने का निर्णय किया, जबकि उनके मन में अपनी भावनाओं को लेकर संघर्ष चल रहा था। गुप्त जी ने उर्मिला की इस आंतरिक संघर्ष को बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है। उर्मिला की पीड़ा केवल एक पत्नी की नहीं थी, बल्कि एक नारी के अस्तित्व की थी, जिसे अपने अधिकारों और भावनाओं का बलिदान करना पड़ा।
गुप्त जी का साहित्यिक योगदान - मैथिलीशरण गुप्त का साहित्यिक योगदान केवल उर्मिला के चरित्र को पुनःजीवित करने तक सीमित नहीं है, बल्कि उन्होंने भारतीय संस्कृति, समाज और नारी के विभिन्न पहलुओं को भी अपने साहित्य में उकेरा है। गुप्त जी ने "साकेत" में उर्मिला के माध्यम से न केवल रामायण के एक उपेक्षित पात्र को पुनर्जीवित किया, बल्कि उन्होंने उस समय की नारी की स्थिति, उसके संघर्ष, और उसकी महत्ता को भी प्रतिष्ठित किया।
गुप्त जी ने उर्मिला के चरित्र के माध्यम से यह संदेश दिया कि नारी केवल सहायक पात्र नहीं है, बल्कि वह अपने आप में एक संपूर्ण और महत्वपूर्ण अस्तित्व है। उन्होंने उर्मिला की पीड़ा और त्याग को इस प्रकार प्रस्तुत किया कि पाठक उसकी पीड़ा में सहभागी बन जाता है और उसके त्याग को आदर की दृष्टि से देखता है।
पुनःजीवित करने का अर्थ - "उर्मिला जी को गुप्त जी ने पुनःजीवित किया है" इस कथन में "पुनःजीवित" शब्द का अर्थ केवल शारीरिक रूप से पुनर्जीवित करना नहीं है, बल्कि यह उर्मिला के चरित्र को साहित्यिक और सांस्कृतिक स्तर पर पुनः स्थापित करना है। उर्मिला, जो रामायण में एक उपेक्षित पात्र थी, गुप्त जी के साहित्य में एक प्रमुख और सार्थक चरित्र के रूप में उभर कर सामने आई। उन्होंने उर्मिला को केवल एक पत्नी या एक सहायक पात्र के रूप में नहीं, बल्कि एक नारी के रूप में प्रतिष्ठित किया, जो त्याग, धैर्य, और निष्ठा का प्रतीक है।
गुप्त जी ने उर्मिला के चरित्र को पुनःजीवित कर उस समय की नारी की पीड़ा और उसके संघर्ष को प्रमुखता दी। उन्होंने यह दिखाया कि नारी केवल एक समर्थक पात्र नहीं है, बल्कि वह भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और उसके बिना समाज का संतुलन नहीं हो सकता। गुप्त जी ने उर्मिला के माध्यम से यह संदेश दिया कि नारी को उसकी पूर्णता में समझने और उसे सम्मान देने की आवश्यकता है।
"उर्मिला जी को गुप्त जी ने पुनःजीवित किया है" यह कथन गुप्त जी के साहित्यिक योगदान की सराहना करता है। उन्होंने उर्मिला के माध्यम से न केवल रामायण के एक उपेक्षित पात्र को पुनःजीवित किया, बल्कि उन्होंने उस समय की नारी की स्थिति, उसके संघर्ष, और उसकी महत्ता को भी प्रतिष्ठित किया। गुप्त जी का यह साहित्यिक योगदान न केवल हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय समाज में नारी के स्थान और उसके महत्व को भी रेखांकित करता है। उर्मिला का चरित्र गुप्त जी के साहित्य में एक नया जीवन पाता है, जिससे वह साहित्यिक और सांस्कृतिक धारा में अमर हो जाती है।
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